Saturday 9 April 2016

डॉ.विष्णु सिंह ठाकुर : छत्तीसगढ़ के जीवंत ज्ञान कोश

डॉ विष्णु सिंह ठाकुर का जन्म 18 अगस्त 1933 को रायपुर जिले के सुंदर केरा गांव में हुआ था। आपने अपनी स्कूली शिक्षा रायपुर में ग्रहण की। ठाकुर जी की आर्थिक स्थिति उस समय अच्छी नहीं थी इसलिए उन्होंने आगे की शिक्षा को रोककर, शिक्षण का कार्य अपना लिया। वे अंबागढ़ चौकी के स्कूल में प्राथमिक शिक्षक के रूप में कार्य करनें लगे। ज्ञान के प्रति उनकी ललक शायद शुरु से ही रही होगी इसलिए, इस बीच उन्होंने अपनी नौकरी से अवकाश लेकर स्नातक और स्नातकोत्तर की परीक्षा देने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय चले गए। उन्होंने वहां से अपनी पढ़ाई पूरी करने पश्चात डॉ राजबली पांडे के मार्गदर्शन में ‘प्री हिस्ट्री एंड आर्कियोलाजी ऑफ दक्षिण कोसला’ विषय पर पीएच डी की उपाधि अर्जित की। इसके पश्चात वे दाउ कल्याण सिंह महाविद्यालय बलौदा बाजार में इतिहास के प्राध्यापक नियुक्‍त हो गए। सन 1972 में उन्होंने दुर्गा महाविद्यालय रायपुर में एक अध्यापक के रूप में कार्य शुरू किया और अपनी सेवानिवृत्ति तक वही कार्य करते रहे।

डॉ. विष्णु सिंह छत्तीसगढ़ के ज्ञान कोश के रूप में जाने जाते रहे हैं। छत्तीसगढ़ के संबंध में ऐसा कौन सा क्षेत्र था जिसके संबंध में उन्हें गहन जानकारी ना हो। यदि उन्हें छत्तीसगढ़ शास्त्री के रूप में संबोधित किया जाए तो शायद यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस राज्य का ज्ञात इतिहास हो, संस्कृति हो या भाषा हो, सभी विधाओं में उनकी जानकारी अतुलनीय थी। जिस विषय पर भी उन से चर्चा आरंभ की जाए वह बहुत गहराई के साथ उस विषय के संबंध में विस्‍तार से जानकारी देते थे। अपने जीवन के अंतिम दिनों तक वे छत्‍तीसगढ़ के विभिन्‍न विषयों पर गंभीर विमर्श किया करते थे और विमर्शों में सहज रूप से भाग लिया करते थे। इन विमर्शो में वे उपस्थित लोगों को नई-नई जानकारियां दिया करते थे। इतिहास और संस्कृति से उनका लगाव काफी गहरा था। वे रायपुर स्थित महंत घासीदास संग्रहालय में पिछले लगभग 40-50 वर्षों से प्रतिदिन आया करते थे। जहां वे सहज रूप से आगंतुकों व जिज्ञासुओं से छत्‍तीसगढ़ के विभिन्‍न पहलुओं पर विषय विशेषज्ञ के रूप में चर्चा किया करते थे। डॉ.विष्‍णु सिंह छत्तीसगढ़ राज्य की संस्कृति संचनालय द्वारा प्रकाशित की जाने वाली मासिक पत्रिका बिहनिया के आरंभ से संपादक रहे। जिसके पिछले अंक तक का संपादन उन्‍होंनें किया। अपनी अस्वस्थता के दिनों में भी वे बिना नागा किए प्रतिदिन संस्कृति संचालनालय आया करते थे। पिछले छह महीने की अवधि में उनका स्वास्थ्य अधिक खराब हो गया तब उनका यह क्रम टूटा।

वे संस्‍कृति संचालनालय में नौकरी नहीं करते थे किन्‍तु उनकी छत्तीसगढ़ संबंधी ज्ञान को बांटने की ललक ही थी जिसके चलते वे प्रतिदिन संचालनालय में आया करते थे। उन्होंने सैकड़ों लेख लिखे, अखबारों में उनकी लेखनी लगातार प्रकाशित होती थी। जब वे काफी क्रियाशील थे तब उन्होंने आकाशवाणी के रायपुर नागपुर और भोपाल केंद्र में सैकड़ों विषयों पर अपने आलेख प्रस्‍तुत किये। छत्तीसगढ़ पर यदि कोई महत्‍वपूर्ण सूचना देने वाली पुस्तक का नाम लिया जाए तो उसमें ‘राजिम’ नामक पुस्तक का उल्लेख सबसे पहले किया जाएगा। जिसे डॉ. विष्‍णु ठाकुर ने लिखा था। मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी ने इस ग्रंथ को प्रकाशित किया है। अविभाजित मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ शास्त्री के रूप में यदि किसी व्यक्ति की महत्ता थी तो वह थे डॉ. विष्णु सिंह ठाकुर। डॉ. विष्‍णु सिंह ठाकुर के राज्‍य के प्रति महत्‍वपूर्ण अवदानों का सम्‍मान करते हुए राज्‍य शासन नें वर्ष 2014 में उन्‍हें पं.रविशंकर शुक्‍ल सम्‍मान भी प्रदान किया था। इस राज्य के पुरातत्वीय इतिहास को खोजने का उन्हेंने जो काम किया है वह अपने आप में अनुकरणीय हैं। उन्होंने राज्य के पुरातत्व और इतिहास के विविध पक्षों को न केवल राष्ट्रीय वरन अंतर्राष्ट्रीय जगत में प्रसारित प्रकाशित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके शोध ग्रंथ के प्रकाशन के संबंध में छत्तीसगढ़ शासन ने जिम्मा उठाया है। जिसके शीघ्र ही विमोचित होने की संभावना है ।

डॉ. विष्णु सिंह ठाकुर समकालीन छत्तीसगढ़ में एक ऐसे ज्ञान पुंज थे जिन्होंने हमेशा छत्तीसगढ़ और यहां के लोगों, यहां की भाषा, यहां की संस्कृति, यहां का इतिहास, यहां का पुरातत्व सहित संपूर्ण प्रदेश के संबंध में ही सोचा। वे कहते थे कि, छत्तीसगढ़ में जो ज्ञान और संस्कृति का भंडार है वह समूचे विश्व को आलोकित करने की क्षमता रखता है। उनकी हमेशा प्रबल इच्छा रहती थी कि, छत्तीसगढ़ के संबंध में जो बातें अभी तक दुनिया नहीं जानती हैं वह दुनिया के समक्ष लाई जाए। वे हमेश कहते थे कि, छत्तीसगढ़ के लोगों में यहां की कला, संस्कृति, भाषा, जीवन शैली, सहजता, सरलता और प्रेम भाव की जो अनुकरणीयता है उसे यहां के लोगों को संभाल कर और सहेज कर रखना चाहिए। आज डॉ विष्णु सिंह ठाकुर जी का दुखद अवसान हुआ, इसके साथ ही एक ऐसे ज्ञान पुंज का हमारे बीच से विलोप हो गया, जिन्होंने इस राज्य को संस्कृति और पुरातत्व के क्षेत्र में अध्ययन करने हेतु एक नई दिशा प्रदान की। उन्‍होंनें अपने बाद की पीढ़ी के तमाम लोगों का संबल बढ़ाया। उन्‍होंनें बताया कि, छत्तीसगढ़ में इतना कुछ है कि कई जन्मों तक भी इसका अध्ययन नहीं किया जा सकता। यहां की महान संस्कृति और ज्ञान परंपराओं को अक्षुण रखने के लिए डॉ विष्णु सिंह ठाकुर द्वारा किए गए कार्यों को राज्य हमेशा याद रखेगा। उनका दुखद निधन प्रशासन, राजनीति, व्‍यापार, पत्रकारिता सहित अन्‍यान्‍य क्षेत्रों में कार्यरत उनके हजारों छात्रों, प्रेमियों, संबंधियों व प्रशंसकों सहित संपूर्ण राज्‍य के लिए अनुकरणीय क्षति है।

-अशोक तिवारी